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उत्तराखंड चमोली जिले में और अलकनंदा नदी के किनारे पर अवस्थित भगवान विष्णु का धार्मिक स्थान बद्रीनाथ मंदिर है. बद्रीनाथ मंदिर समुंद्र से 3133 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है. बद्रीनाथ धाम मंदिर भारत के चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक है और यह वैष्णो वैष्णवो के सबसे पवित्र मंदिर में से एक माना जाता है.. आइए जानते हैं विस्तार में बद्रीनाथ मंदिर के इतिहास, महत्व, तीर्थ यात्रा, भूगोल, यात्रा इत्यादि विस्तार में.
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बद्रीनाथ मंदिर की उत्पत्ति (Badrinath Mandir in hindi )
सूत्रों के मुताबिक बद्रीनाथ की उत्पत्ति संस्कृत योगिक बद्रीनाथ से हुई है. जिसमें बद्री और नाथ मिलकर एक शब्द बना है. बद्री का मतलब बेर का पेड़ नाथ का मतलब भगवान विष्णु होता है इस तरह बद्रीनाथ मंदिर का उत्पत्ति हुई है. बद्रीनाथ मंदिर को बद्रीकाश्रम के रूप में भी जाना जाता है. यह मंदिर हिंदुओं का पवित्र स्थान है.
इस मंदिर में बद्रीनारायण के रूप में विष्णु की काली पत्थर की 1 मीटर लंबी प्रतिमा है. कहा जाता है इस मूर्ति को विष्णु के स्वयं प्रकट मूर्तियों में से माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार बद्रीनाथ मंदिर चूरू में एक बौद्ध मठ हुआ करता था और वहां आदि गुरु शंकराचार्य आठवीं शताब्दी के आसपास इस जगह का यात्रा करने आए थे तो उस के बाद उन्होंने इस मंदिर को हिंदू मंदिर में बदल दिया था.
बद्रीनाथ मंदिर की इतिहास
बद्रीनाथ धाम के इतिहास से संबंधित बहुत सारे ऐसे पौराणिक कथाएं हैं. जिसमें एक प्राचीन कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु इस जगह पर कठोर तपस्या कर रहे थे. तपस्या के दौरान मौसम खराब हो जाती है और भगवान विष्णु अपने तपस्या के कारण इस चीजों पर ध्यान नहीं देते हैं. लेकिन उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी ने वहां पर बद्री के पेड़ का रूप धारण करके भगवान विष्णु को बचाती है. भगवान विष्णु माता लक्ष्मी की भक्ति से प्रसन्न होकर उस जगह का नाम बद्रीकश्रम रख दिए थे.
बद्रीनाथ की मंदिर कुल 3 भाग में विभाजित है. इस गर्भगृह में भगवान बदरीनाथ की मूर्ति इस जगह के अंदरूनी हिस्से में बैठी हुई है और वहां सोने की चादर से छिपी हुई छत है.
- मंदिर का दूसरा भाग दर्शन मंडप के नाम से जाना जाता है जिसने पूजा समारोह आदि किया जाता है.
- मंदिर का तीसरा भाग सभा मंडप है, जो एक बाहरी हॉल के रूप में है. जहां पर भक्तजन भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करते हैं.
- बद्रीनाथ के मंदिर स्थान में वैदिक भजनों के साथ और घाटियों की आवाज घूमने के साथ ही मंदिर में स्वर्गीय वातावरण पैदा होता है. मंदिर में पूजा करने से पहले मंदिर के पास में ही अवस्थित पपीता कुंड में श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं और उसके बाद ही पूजा समारोह में शामिल हो सकते हैं.
बद्रीनाथ मंदिर की पूजा का विधि
बद्रीनाथ मंदिर में सुबह पूजा होने से पहले महा आरती होती है, जहां पर अभिषेक गीता पाठ और भगवान मार्ग, और शाम में पूजा गीता गोविंदा और आरती की जाती है.
मंदिर में भगवान की दर्शन कितना बजे से होती है ?
मंदिर में भगवान बद्रीनाथ का दर्शन सुबह 6:30 बजे से शुरू हो जाती है.
बदरीनाथ धाम में माता मूर्ति का मेला बद्रीनाथ मंदिर में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख त्योहार में से एक है.
लोक कथा के अनुसार भगवान बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना
शास्त्रों में पौराणिक कथा के अनुसार यह स्थान भगवान शिव भूमि के रूप में व्यवस्थित किया गया था. लेकिन उसी भगवान विष्णु अपने ध्यान योग्य के लिए एक स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के पास शिव भूमि का स्थान बहुत पसंद आया. भगवान विष्णु ने वर्तमान में अवस्थित चरण पादुका स्थान पर ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास बालक का रूप धारण करके वहां पर रोने लगे थे.
वहां पर किसी बालक का रोने का आवाज सुनकर माता पार्वती और भगवान शिव जी उस बालक के पास आए थे और उस बालक से पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो और तुम्हें क्या चाहिए. तो वहां पर बालक में ध्यान योग्य करने के लिए शिव भूमि का स्थान मांगलिया.
इस तरह भगवान विष्णु ने एक बालक का रूप धारण करके भगवान शिव और माता पार्वती से वह शिवभूमि अपने ध्यान योग करने के लिए प्राप्त कर लिए. वही पवित्र स्थान आज बद्री विशाल के नाम से भी जाना जाता है.
बद्रीनाथ मंदिर की दंतकथा (Badrinath Mandir in hindi Story )
भागवत पुराण के अनुसार जब बद्रिकाश्रम में भगवान विष्णु ऋषि नारा और नारायण के रूप में अवतार लेकर सभी जीवित प्राणियों के कल्याण के लिए अनादि काल से महा तपस्या कर रहे थे. तब से हिंदू ग्रंथों में बद्रीनाथ क्षेत्र को बद्रिकाश्रम कहा गया है. यह स्थान भगवान विष्णु के लिए एक पवित्र स्थान है विशेष रूप से जब भगवान विष्णु के दोहरे रूप नारायण और नारायण में इस प्रकार महाभारत में कृष्ण अर्जुन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि आप पूर्व शरीर में नारा थे और अपने साथी के रूप में नारायण थे. इस तरह भगवान विष्णु ने इस जगह पर कई वर्षों तक भयंकर तपस्या की थी.
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भागीरथ के अनुरोध पर देवी गंगा से पीड़ित मानवता की मदद के लिए पृथ्वी पर उतरने का अनुरोध किया गया था. तो तब पृथ्वीभी उनके “के बल को सहन करने में असमर्थ थी. इसलिए शक्तिशाली गंगा दो पवित्र भागों में विभाजित हो गई जिसमें से एक अल कंधा नदी भी है.
बद्रीनाथ के आसपास के पहाड़ों का उल्लेख महाभारत में भी किया गया है, जब कहा जाता है कि पांडव पश्चिम गढ़वाला में स्वर्गारोहिणी नामक एक चोटी की ढलान पर चढ़ते समय एक-एक करके मर गए थे. उस वक्त पांडव स्वर्ग के रास्ते में बद्रीनाथ और बद्रीनाथ से 4 किलोमीटर उत्तर में प्र माणा शहर से होकर गुजरे थे.तब वहां पर एक गुफा भी थी जहां पौराणिक कथा के अनुसार वहां पर व्यास ने महाभारत लिखी थी.
पद्म पुराण के अनुसार बद्रीनाथ के आसपास के क्षेत्र में आध्यात्मिक खदानों से भरपूर होने का जिक्र किया है.
जैन धर्म में भी बद्रीनाथ स्थान को पवित्र माना है क्योंकि जैन धर्म में हिमालय को आठ अलग-अलग पर्वत श्रृंखलाओं गौरी शंकर, कैलाश, बद्रीनाथ, नंदा, द्रोणागिरी, नारा नारायण और त्रिशूली के कारण अष्टापद भी कहा गया है. वही ऋषभ नाथ ने हिमालय पर्वत माला में अवस्थित कैलाश पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया था और जैन आस्था के अनुसार बद्रीनाथ से असंख्य जैन मुनियों ने तपस्या करके मोक्ष प्राप्त की थी.
श्रीमद् भागवत के अनुसार इस स्थान पर ऋषभदेव के पिता नाभि हराया और माता मरु देवी ने ऋषभदेव के राज्याभिषेक के बाद कठोर तप किया था. और उसके बाद समाधि ले ली थी. यहां आज भी ना भी हराया के पद चिन्ह है. यहां का नीलकंठ पर्वत हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है.
बद्रीनाथ मंदिर की भूगोल
बद्रीनाथ मंदिर की औसत ऊंचाई समुंदर से 3100 किलोमीटर है. यह मंदिर गढ़वाल हिमालय में अलकनंदा नदी के तट पर अवस्थित है. यह स्थान नीलकंठ शिखर से 9 किलोमीटर पूर्व में नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में स्थित है. बद्रीनाथ नंदा देवी शिखर से 62 किलोमीटर उत्तर पश्चिम और ऋषिकेश से 301 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित है. गौरीकुंड से बद्रीनाथ तक का सड़क मार्ग 233 किलोमीटर है. यहां की जलवायु की बात किया जाए तो बद्रीनाथ की जलवायु आश्रम महादीपीय है जो उपोष्ण कटिबंधीय उच्च भूमि जल वायु की सीमा पर है.
बद्रीनाथ की जनसंख्या
2011 की भारतीय जनगणना के अनुसार बद्रीनाथ की कुल जनसंख्या 2438 थी. जिसमें पुरुषों की संख्या 2054 था और वहीं महिलाएं की संख्या 338 थी. और 0 से लेकर 6 वर्ष के आयु का बच्चों का जनसंख्या 68 थी. जिसमें बद्रीनाथ में अक्षरों की संख्या कुल 2265 थी जो जनसंख्या का 92.9 प्रतिशत होता है जिसमें पुरुषों की साक्षरता 95.4 प्रतिशत और महिलाओं की 79.7 प्रतिशत थी. बद्रीनाथ में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की संख्या क्रमश 113 और 22 थी 2011 के अनुसार बद्रीनाथ में कुल 850 घर थे.
बद्रीनाथ यात्रा के लिए उत्तम समय
यदि आप बद्रीनाथ यात्रा के लिए जाना चाहते हैं तो ऐसे तो 12 महीना आप जा सकते हैं. लेकिन, उसके लिए सही समय और वातावरण के बाद किया जाए तो बद्रीनाथ धाम में यात्रा का मौसम हर साल अप्रैल महीना से शुरू होता है और नवंबर के महीने में खत्म हो जाती है. बद्रीनाथ धाम का धार्मिक महत्व अपने पुराणिक वैभव और ऐतिहासिक मूल्य से जुड़ा हुआ है.
बद्रीनाथ मंदिर कैसे जाएं ?
यदि आप बद्रीनाथ धाम की यात्रा करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको सबसे पहले हरिद्वार पहुंचना पड़ेगा. अपने सुविधा और अपने जगह के अनुसार से आपको सबसे पहले हरिद्वार पहुंच जाना है. उसके बाद आपको बद्रीनाथ जाने के लिए हरिद्वार से बस ले सकते हैं. बस आपको सीजन के अनुसार हरिद्वार बस स्टैंड से प्रतिदिन मिल जाती है. बद्रीनाथ से बद्रीनाथ से मणा गांव जाने के लिए आपको बद्रीनाथ मंदिर के पास से ही बहुत सारे प्राइवेट टैक्सी मिल जाएगी. वहां से एक प्राइवेट टैक्सी बुक करके आप गांव का एक्सप्लोर कर सकते हैं. उस गांव में आपको टैक्सी पार्किंग का पैसा खुद ही देना पड़ेगा.
बद्रीनाथ की यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन कैसे करवाएं ?
यदि आप बद्रीनाथ यात्रा के लिए जाना चाहते हैं लेकिन उससे पहले आपको रजिस्ट्रेशन भी करना जरूरी है. रजिस्ट्रेशन का प्रक्रिया आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीका से कर सकते हैं. यदि आप ऑफलाइन के माध्यम से करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको सबसे पहले हरिद्वार या ऋषिकेश से ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं वहां के शहर से तो वहां पर आपको बहुत जगह मिल जाएगा जहां पर बद्रीनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन की जाती है. यदि आप ऑनलाइन के माध्यम से रिटर्न करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको चार धाम के ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर विजिट कर सकते हैं और वहां से ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं.
बद्रीनाथ मंदिर में रुकने की जगह कहां-कहां है ?
आप यदि बद्रीनाथ यात्रा के लिए जाते हैं तो वहां पर आपको रात्रि विश्राम या आराम करने के लिए बद्रीनाथ निवास मिल जाएगा जो GMVN द्वारा व्यवस्था की गई है. इसके अलावा वहां पर आप किसी प्राइवेट होटल के सहारा भी ले सकते हैं.
बद्रीनाथ धाम जाने में कितना खर्च आता है ?
बद्रीनाथ यात्रा में यदि जाना चाहते हैं और चाहते कि आप कितना खर्च आएगा इसका मूल्यांकन करें तो यह बात कहना मुश्किल है क्योंकि यह खर्चे का जो बात है समय,जगह और आप कितना दिन ठहरना चाहते हैं उसके हिसाब से अलग-अलग पैसा लग सकता है. जिसमें आप कितना खर्चा करना चाहते हैं और कितना आपको खर्चा लगेगा वह आपको जाने के बाद ही पता चल जाएगा. लेकिन फिर भी आप अकेले जाना चाहते हैं तो अनुमानित राशि 5 से लेकर ₹10000 प्रति व्यक्ति लग सकता है.
बद्रीनाथ मंदिर Location Map
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निष्कर्ष
इस लेख में हमने जाना बद्रीनाथ मंदिर (Badrinath Mandir in Hindi ) के बारे में, बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास, बद्रीनाथ मंदिर का रहस्य, बद्रीनाथ जाने का संपूर्ण जानकारी आशा करता हूं आप लोग यह जरूर पसंद आई हो. यदि किसी तरह का कोई मामला है तू नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट जरूर करें धन्यवाद.
FAQs
Q. बद्रीनाथ में कौन से भगवान की मूर्ति है?
A. बद्री और नाथ मिलकर एक शब्द बना है. बद्री का मतलब बेर का पेड़ नाथ का मतलब भगवान विष्णु होता है इस तरह बद्रीनाथ मंदिर का उत्पत्ति हुई है. बद्रीनाथ मंदिर को बद्रीकाश्रम के रूप में भी जाना जाता है.
Q. बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना कैसे हुई?
A. बद्रीनाथ की उत्पत्ति संस्कृत योगिक बद्रीनाथ से हुई है. जिसमें बद्री और नाथ मिलकर एक शब्द बना है. बद्री का मतलब बेर का पेड़ नाथ का मतलब भगवान विष्णु होता है इस तरह बद्रीनाथ मंदिर का उत्पत्ति हुई है.
Q. बद्रीनाथ की कहानी क्या है?
A. भागवत पुराण के अनुसार जब बद्रिकाश्रम में भगवान विष्णु ऋषि नारा और नारायण के रूप में अवतार लेकर सभी जीवित प्राणियों के कल्याण के लिए अनादि काल से महा तपस्या कर रहे थे. तब से हिंदू ग्रंथों में बद्रीनाथ क्षेत्र को बद्रिकाश्रम कहा गया है.