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गोल्डन टेंपल (Golden Temple )
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) एक गुरुद्वारा है. जो हमारे देश भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में स्थित है. स्वर्ण मंदिर को हरिमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है. पंजाबी भाषा की उच्चारण में गोल्डन टेंपल को भगवान का निवास भी कहा जाता है. स्वर्ण मंदिर सिख धर्म का प्रमुख आध्यात्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है. यह मंदिर करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर और ननकाना नाम साहिब में गुरुद्वारा जन्म स्थल के साथ सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है. आइए जानते हैं आज के इस लेख में स्वर्ण मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार में.
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स्वर्ण मंदिर की विवरण (Golden Temple Wiki )
मंदिर का नाम | श्री हरीमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) गुरुद्वारा (Golden Temple ) |
देश | भारत |
राज्य | पंजाब |
शहर | अमृतसर |
निर्माण आरंभ | दिसंबर 15 सौ पचासी |
निर्माण पूर्ण | अगस्त 1604 |
डिजाइन और निर्माण | गुरु अर्जुन देव और सीख |
वास्तुकार | गुरु अर्जुन देव |
स्थापत्य कला | स्थापत्य कला |
अधिकारी का व्यवसाय | www.goldentempleamritsar.org |
स्वर्ण मंदिर की नामकरण ( name of golden temple)
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) को हरमंदिर साहिब, हरिमंदिर या फिर दरबार साहिब भी कहा जाता है. जिसका अर्थ पवित्र दर्शक होता है. साथ ही मंदिर में सोने की पर्थ से ढके गर्भगृह केंद्र के लिए स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है. जैसे कि हरमंदिर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है. जिसमें हरि का मतलब भगवान होता है और मंदिर का मतलब घर होता है.
इसीलिए मंदिर के नाम के साथ साहिब जोड़ा जाता है. आपको बता दें कि यह शब्द सिख धर्म परंपराओं में धार्मिक महत्व के स्थानों के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है. सिख परंपराओं में हरमंदिर साहिब नाम के कई सारे गुरुद्वारे हैं जैसे कि किरतपुर और पटना में अवस्थित गुरुद्वारा इत्यादि. लेकिन इन सभी गुरुद्वारों में सबसे पूजनीय और प्रमुख रूप से अमृतसर में अवस्थित स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा को ज्यादा महत्व दी जाती है,
स्वर्ण मंदिर की इतिहास (History of Golden Temple )
हमारे देश की ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार वह भूमि आगे जाकर अमृतसर बनी और जहां पर हरी मंदिर साहिब है वहां सीख परंपराओं के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास द्वारा चुना गया था. उस वक्त मंदिर को गुरुदा चक्क कहा जाता था. क्योंकि उस टाइम में गुरु ने अपने शिष्य रामदास को एक मानव निर्मित पुल के केंद्रीय बिंदु के साथ एक नया शहर शुरू करने के लिए जमीन ढूंढने के लिए कहा गया था.
जब 1574 में गुरु राम दास के गुरु अमर दास के उत्तराधिकारी बनने के बाद और गुरु अमर दास के पुत्रों के शत्रु का पूर्ण विरोध का सामना करने पर गुरु रामदास ने रामदास पुर की नाम से शहर का स्थापना किया और इसी नाम से लोग जानने लगे. उस वक्त रामदासपुर शहर का विस्तार गुरु अर्जुन के समय में दान द्वारा वित्त पोषित और स्वैच्छिक कार्य द्वारा किया गया था.
बाद में धीरे-धीरे यह शहर बढ़कर अमृतसर शहर बन गया.1604 में गुरु अर्जुन ने नए गुरुद्वारे के अंदर सिख धर्म का ग्रंथ स्थापित किया. और गुरु रामदास के प्रयासों को जारी रखते हुए गुरु अर्जुन ने अमृतसर को एक प्राथमिक शिविर स्थल के रूप में स्थापित किया.
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) को सिखों के चौथे गुरु रामदास जी ने पहली नीव रखी थी. स्वर्ण मंदिर बनने के बाद कहीं बार नष्ट किया गया था. लेकिन फिर भी लोगों के भक्ति और आस्था के कारण सिख और हिंदू दोनों मिलकर इस मंदिर को दोबारा से बना दिया गया. स्वर्ण मंदिर को दोबारा 17 वी सदी में ही महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलूवालिया द्वारा बनाया गया था.
लेकिन इस बार भी मंदिर को नष्ट कर दिया गया. जितने बार भी यह मंदिर नष्ट हुई उतनी बार नष्ट होने का कुछ ना कुछ घटना को दर्शाया जाता है. जब अफगानिस्तान हमलावरों ने 19वीं सदी में स्वर्ण मंदिर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था. तब महाराजा रणजीत सिंह ने स्वर्ण मंदिर को फिर से बनाया था.
और इस मंदिर को सोने की परत से सजाया गया था. जब 1984 में हिंदुस्तान के टुकड़े टुकड़े करने की मनसा रखने वाले और सैकड़ों निर्दोष हिंदुओं के हत्या करने वाले आतंकवादी भिंडरावाले ने भी स्वर्ण मंदिर को अपने कब्जे में लिया था. और मंदिर को अपने ठिकाने के रूप में प्रयोग किया था. बाद में फिर सेना को मंदिर के अंदर घुस कर ही उस आतंकवादियों को खत्म करना पड़ा.
10 दिन तक चली लगातार इस लड़ाई में आतंकवादी भिंडरावाले और उनके साथियों को मार गिराया गया. साथ ही उन लोगों के पास से पाकिस्तानी निर्मित सैकड़ों भारी मात्रा में हथियार जप्त किए गए.
स्वर्ण मंदिर का निर्माण (construction of the golden temple )
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) की निर्माण से पहले जब जमीन की बात आई तो मंदिर के लिए जो जमीन हासिल की है इसके पीछे दो कहानियां मानी जाती है. पहला कहानी यह है कि जब जमीन खरीदने की बात आई तो गजट ईयर रिकार्ड के आधार पर जमीन तुग गांव के लोगों से और मालिकों से रोज ₹700 में जमीन दान पेटी से खरीदी गई थी. दूसरी कहानी यह भी आता है कि कहा जाता है कि जब सम्राट अकबर ने गुरु रामदास की पत्नी को भूमि दान में दी थी.
लगभग 400 वर्ष पुराने इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था. स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा शिल्प सौंदर्य की एक अलग मिसाल है. इसका अनुमान आप मंदिर की नक्काशी और बाहरी सुंदरता देखते ही आप समझ जाएंगे. गुरुद्वारे के चारों और दरवाजे हैं जो चारों दिशाओं में खुलती है.
कहा जाता है कि उस समय भी समाज 4 जातियों में विभाजित था और कई जातियों और लोग अनेक मंदिर में जाने की इजाजत नहीं दी जाती थी. लेकिन स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारे के यह चारों दरवाजे उन चारों जातियों के लिए आमंत्रित किए जाते थे. और धर्म के श्रद्धालुओं का स्वागत की जाती थी.
स्वर्ण मंदिर कि परिसर (Golden Temple Complex )
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) की परिसर में दो बड़े और कई छोटे-छोटे तीर्थ स्थल है. वह सारे तीर्थ स्थल सरोवर के चारों तरफ फैले हुए हैं. इस सरोवर को अमृतसर यानी कि अमृत सरोवर और अमृत जिनके नाम से भी जाना जाता है. स्वर्ण मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की भारत से नक्काशी की गई है.
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) मैं पूरे दिन गुरुवाणी की स्वर लहरिया की धुन गूंजती रहती है. सिख धर्म के श्रद्धालु सिख गुरु को ईश्वर तुल्य मानते हैं साथ ही स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले वह मंदिर के सामने अपने सर को झुकाते हैं फिर अपने पांव को अच्छी तरह से धोने के बाद सीढ़ियों से मुख्य मंदिर तक जाते हैं. जैसे आप मुख्य मंदिर होते हुए आगे बढ़ते हैं वहां पर आपको मंदिर से जुड़ी हुई सारी घटनाएं और उसका पूरी इतिहास लिखा हुआ है .
स्वर्ण मंदिर की मुख्य द्वार (Main gate of Golden Temple )
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) में कुल चार द्वार है इनमें से एक द्वार गुरु रामदास सराय का है. इस सराय में अनेक विश्राम स्थल भी अवस्थित है. इस जगह में विश्राम के साथ-साथ यहां चौबीसों घंटे लंगर चलाए जाते हैं जिसमें कोई भी प्रसाद ग्रहण कर सकता है. स्वर्ण मंदिर के आसपास अनेक तीर्थ स्थल है इसमें से वेरी वृक्ष को भी एक तीसरे स्थान के रूप में माना जाता है. इस वृक्ष को बेर बाबा बुड्ढा नाम से जाना जाता है.कहा जाता है कि जब स्वर्ण मंदिर की निर्माण हो रही थी तब बेर बाबा बुड्ढा बाबा इस वृक्ष के नीचे बैठकर मंदिर की निर्माण कार्य पर नजर रखा करते थे.
स्वर्ण मंदिर की सरोवर (Golden Temple Lake )
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) सरोवर के बीच में मानव निर्मित दूरी पर बना हुआ है. पूरे मंदिर पर सोने की परत सेजल सजाई गई है इसलिए भी मंदिर को स्वर्ण मंदिर कहा जाता है. यह मंदिर एक पुल द्वारा किनारे से जुड़ा हुआ है झील में भक्तजन स्नान करते हैं. यह सरोवर मछलियों से भरी हुई है. मंदिर की 100 मीटर की दूरी पर स्वर्णा जड़ीत अकाल तख्त है इसमें एक भूमिगत तल है और 5 अन्य ताल भी है इसमें एक संग्रहालय है और सवा घर भी है. इस सभा घर में सरबत खालसा की बैठक होती है. यही सवाल घर से सिख पंथ से जुड़ी हर मसले या समस्या का समाधान भी की जाती है.
श्रद्धालु जब मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं तो सबसे पहले परिसर में स्थित सभी पवित्र स्थलों की पूजा स्वरूप अमृतसर के चारों तरफ बने गलियारे की परिक्रमा करते हैं. इसके बाद श्रद्धालु अकाल तख्त के दर्शन करते हैं और अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद ही श्रद्धालु स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं.
गुरुद्वारे की दीवार पर अंकित किवदंती के अनुसार एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोढ़ से ग्रसित आदमी से कर देता है. लेकिन उस लड़की को यह विश्वास होता है कि हर व्यक्ति के समान उनके पति भी ईश्वर की दया पर जीवित है. और ईश्वर ही उन्हें खाने के लिए सब कुछ देता है. एक बार की बात है जब वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बैठा कर गांव में भोजन की तलाश के लिए चली जाती है.
तभी उस जगह अचानक एक कौवा आता है और उस तालाब में डुबकी लगाता है. कौवा उस तालाब में डुबकी लगाते ही वह कौवा हंस बनकर बाहर निकलता है. ऐसा देखकर वह कोढ़ से ग्रसित आदमी काफी हैरान होता है और वह भी सोचने लगता है अगर कौवा इस तालाब में डुबकी लगाने से हंस बन के निकल सकता है तो मैं क्यों नहीं ठीक हो सकता हूं. यह सोच कर वह आदमी भी तालाब में डुबकी लगाता है.
वह आदमी उस तालाब में डुबकी लगाते ही वह व्यक्ति कोढ़ से ग्रसित से मुक्त हो जाता है. यह वही सरोवर होता है जो गोल्डन टेंपल परिसर में है. पहले यह तालाब अभी छोटा था और तालाब के चारों ओर बेरी के पेड़ थे. अब तालाब की आकार पहले से काफी बड़ा हो चुका है. फिर भी बेरी का पेड़ चारों और है. यह स्थान काफी पवित्र माना जाता है और श्रद्धालु यहां भी मत्था टेकने आते हैं.
स्वर्ण मंदिर की अकाल तख्त (Akal Takht of Golden Temple)
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) के बाहर दाई और अकाल तख्त है अकाल तख्त का निर्माण 1609 में किया गया था. यहां पर दरबार साहिब स्थित है उस समय यहां कई अहम फैसले किए जाते थे. संगमरमर से बनी यह इमारत ए देखने योग्य है. यहां पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति का कार्यालय भी अवस्थित है. यहां से सीखो से जुड़े कई सारे महत्वपूर्ण कार्य और निर्णय लिए जाते हैं.
स्वर्ण मंदिर की लंगर (Golden Temple Langar )
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) परिसर में गुरु का लंगर में गुरुद्वारे में आने वाले संपूर्ण भक्तजनों के लिए खाने पीने की पूरी व्यवस्था की जाती है. यहां आने वाले भक्तजन के लिए 24 घंटा लंगर खुली रहती है. लंगर में खाने पीने की व्यवस्था गुरुद्वारे में आने वाले श्रद्धालु गढ़ द्वारा चढ़ाए गए चढ़ावे और दूसरे कोसों से होती है. लंगर पर खाने पीने की व्यवस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की ओर से नियुक्त किए गए सेवादार के द्वारा की जाती है.
और यहां पर आने वाले संपूर्ण भक्तजन की सेवा में हर तरह से योगदान देते हैं. यहां पर लंगर में प्रतिदिन करीब करीब 40,000 लोग रोज लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं. और त्योहार के दिन यह संख्या डेढ़ से दो लाख तक पहुंच जाती है. यहां पर सिर्फ भोजन का ही नहीं बल्कि श्री गुरु रामदास सराय में गुरुद्वारे में आने वाले संपूर्ण भक्त आलू जनों के लिए ठहरने की व्यवस्था की गई है.
इस सराय का निर्माण 1784 में किया गया था और यहां कुल 228 कमरे और 18 बड़े बड़े हॉल है यहां पर रात गुजारने के लिए गद्दे व चादर मिल जाती है और इस जगह एक व्यक्ति 3 दिन तक ठहरने की पूर्ण व्यवस्था की जाती है.
स्वर्ण मंदिर की आस पास की गुरुद्वारे एवं अन्य तीर्थ स्थल (Gurudwaras and other pilgrimage sites around the Golden Temple)
यदि आप स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) गुरुद्वारे में जाते हैं और वहां पर आप आसपास के तीर्थ स्थान की यात्रा करना चाहते हैं तो स्वर्ण मंदिर के पास ही गुरुद्वारा बाबा अटल और गुरुद्वारा माता कौलाँ है. यह गुरुद्वारा आप पैदल ही जा सकते हैं. साथी पास में ही गुरु का महल नामक स्थान है यहां वही स्थान है जहां स्वर्ण मंदिर के निर्माण के समय गुरु रहा करते थे.
बाबा अटल गुरुद्वारा कुल 9 मंजिला इमारत से बनी हुई है यह अमृतसर शहर की सबसे ऊंची इमारत में से एक मानी जाती है. यह गुरुद्वारा गुरु गोविंद सिंह जी के पुत्र की याद में बनाया गया था जो केवल 9 वर्ष की उम्र में ही मृत्यु को प्राप्त हुए थे. इस गुरुद्वारे के दीवारों पर अनेक चित्रण किया गया है.
साथ ही यहां पर गुरु नानक देव जी की जीवनी और सिख संस्कृति को प्रदर्शित करता है इसके पास माता कौलाँ जी गुरुद्वारा है यह गुरुद्वारा बाबा अटल गुरुद्वारे की अपेक्षा में छोटा है. स्वर्ण मंदिर के बिल्कुल पास वाली झील में बना हुआ है यह गुरुद्वारा उस दुखियारी महिला को समर्पित है जिसको गुरु हरगोविंद सिंह जी ने यहां रहने की अनुमति दी थी.
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) के पास में ही गुरुद्वारा सारागढ़ी साहिब है यह गुरुद्वारा केसर बाग में स्थित है और आकार में बहुत ही छोटा है. इस गुरुद्वारा को 1902 में ब्रिटिश सरकार ने उन सीख सैनिकों की श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया था जो अफगान युद्ध में शहीद हुए थे.
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) गुरुद्वारे के आसपास बहुत अन्य महत्वपूर्ण स्थान है. साथ ही वहां पर आपको नजदीक में ही ऐतिहासिक जालियांवाला बाग है जहां जनरल डायर की कुर्ता की निशानियां मौजूद है वहां जाकर शहीदों की कुर्बानियों की याद ताजा हो जाती है. गुरुद्वारे के पास से कुछ ही दूर में भारत-पाकिस्तान की सीमा पर स्थित बांधव सीमा एक अन्य महत्वपूर्ण जगह है यहां भारत और पाकिस्तान की सेना है अपने देश का झंडा सुबह हराने और शाम को उतारने का कार्यक्रम करती है और इस मौके पर परेड भी होती है.
स्वर्ण मंदिर में होने वाली प्रकाशोत्सव (Festival of Lights to be held in the Golden Temple )
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) में सुबह 2:30 बजे से ही प प्रकाशोत्सव शुरू हो जाती है. जब गुरु ग्रंथ साहिब जी को उनके कक्ष से गुरुद्वारे में लाया जाता है तब संगतो की टोली भजन कीर्तन करते हुए गुरु ग्रंथ साहिब को पालकी में सजा कर गुरुद्वारे में ले जाती है. रात के समय सुखासन के लिए गुरु ग्रंथ को कक्ष में भी वापस भी इसी तरह पहुंचाया जाता है.
स्वर्ण मंदिर कैसे पहुंचे (how to reach golden temple)
यदि आप भी स्वर्ण मंदिर (Golden Temple ) जाना चाहते हैं तो इसके लिए 3 मार्च का मदद ले सकते हैं भाइयों मार्ग रेलवे मार्ग और सड़क मार्ग. यदि आप बायो मार्ग से होते हुए मंदिर तक पहुंचना चाहते हैं तो सबसे पहले आप अमृतसर में अंतरराष्ट्रीय से होते हुए मंदिर तक पहुंचना चाहते हैं तो सबसे पहले आप अमृतसर में अंतरराष्ट्रीय स्तर का हवाई अड्डा में पहुंचकर वहां से गुरुद्वारे के लिए सीधे टैक्सी ले सकते हैं.
यदि आप रेल मार्ग से जाना चाहते हैं तो. आप दिल्ली से सीधे अमृतसर के लिए बहुत सारे ट्रेन मिल जाएगी उस ट्रेन ले सकते हैं और अमृतसर से आप सीधे टैक्सी या कोई ट्रांसपोर्ट गाड़ियों का सहायता से मंदिर तक पहुंच सकते हैं.
यदि आप सड़क मार्ग से जाना चाहते हैं तो ऐसे में ऐसे में आप अमृतसर दिल्ली से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर है. राष्ट्रीय राजमार्ग 1 पर स्थित है आसपास के सभी राज्यों के सभी प्रमुख नगरों से होते हुए अमृतसर तक बस सेवा चलती है और इस रूट में बस 24 घंटा चलते रहती है. आपको सीधे बस लेना है और अमृतसर पहुंचना है और वहां से आप आसानी से सोना मंदिर पहुंच सकते हैं.
स्वर्ण मंदिर की पता और मैप (Address and Map of Golden Temple )
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FAQs.
Q. where is golden temple ?
Ans – Golden Temple Rd, Atta Mandi, Katra Ahiuwalia, Amritsar
Q. who built golden temple ?
Ans – Guru Arjun Dev
Q. who made golden temple ?
Ans – Guru Arjun Dev And Sikh
Q. when was the golden temple built ?
Ans – 1585