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Kawad Yatra : क्या है कावड़ यात्रा ?कावड़ यात्रा की इतिहास, कावड़ यात्रा की कुछ शुरुआती मान्यताएं 2023

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Kawad Yatra : हर साल की तरह  इस साल भी श्रावण महीना का शुरुआत हो चुका है.  हिंदू धर्म में श्रावण महीना को भगवान शिव का महीना भी कहा जाता है.  सावन महीना में भगवान शिव के श्रद्धालु कंधे पर कावड़ लेकर अपने घर से कावड़ यात्रा के लिए भगवान शिव के पूजा के लिए निकल जाते हैं.  यह सिलसिला कावड़ यात्रा की शुरुआती से सावन शिवरात्रि तक कावड़ यात्रा चलेगी. इस बार अधिकमास  होने की वजह से सावन महीना में 8:00 सोमवार का व्रत किया जाएगा.

कावड़ यात्रा में श्रद्धालु रविवार को पवित्र गंगा नदी से जल उठाकर शिव मंदिर तक पैदल यात्रा कर कर  अगले दिन सोमवार को भगवान शिव  को जलाभिषेक  और पूजा करते हैं.  इस तरह एक कावड़ यात्रा पूरा होती है. शास्त्रों के अनुसार ऐसे करने से अपने पूरा मनोकामना पूर्ण हो जाती है.

Table of Contents

क्या है कावड़ यात्रा ? (What is Kawad Yatra ?)

कावड़ यात्रा उत्तराखंड में हरिद्वार गोमुख और गंगोत्री के हिंदू तीर्थ स्थानों के लिए कावड़िया या भोले के नाम से जाने वाले शिव भक्तों की एक  हर साल मनाए जाने वाले तीर्थयात्रा है.  ऐसे में गंगा नदी का पवित्र जल लाने के लिए बिहार में सुल्तानगंज से लाखों तीर्थयात्री गंगा नदी से पवित्र जल लाते हैं .

और इसे अपने स्थानीय शिव मंदिर या मेरठ में पुरा महादेव और औघड़नाथ मंदिर और काशी विश्वनाथ जैसे विशिष्ट मंदिरों में जल को चढ़ाने के लिए अपने कंधों पर सैकड़ों किलोमीटर तक चले जाते हैं और  वह जल  जल्द से भगवान शिव को जलाभिषेक और पूजा करके चढ़ाते हैं.  ऐसे करने से श्रद्धालुओं की संपूर्ण मनोकामना पूर्ण हो जाती है.

कावड़ यात्रा एक धार्मिक प्रदर्शनों की एक शैली को समर्पित करता है जहां श्रद्धालु एक डंडे  के दोनों साइड में छोटे-छोटे कंटेनर या कलर्स (  इसी उपकरण को कावड़ कहा जाता है) में पवित्र गंगा नदी से पानी लाते हैं. जिसे कवर का नाम दिया गया है.  पानी का स्रोत गंगा होने के कारण श्रद्धालु  दूर दूर तक जाकर गंगा नदी से अपने कावड़ पर उस जल को प्रसाद के रूप में भगवान शिव को समर्पित किया जाता है.प्राप्त जानकारी के अनुसार कावड़ यात्रा 19वीं सदी की शुरुआत  में भी मौजूद थी जब अंग्रेजी यात्रियों ने उत्तर भारतीय मैदानों पर अपनी यात्रा के दौरान कई स्थानों पर कावर तीर्थ यात्रियों को देखने की पुष्टि की है.

 1980 के दशक के अंत तक जब कावड़ यात्रा को लोकप्रियता  मिलना शुरू हुई तब कावड़ यात्रा उस वक्त कुछ संतो और वृद्ध श्रद्धालु द्वारा ही मनाए जाने वाली एक छोटी सी यात्रा हुआ करती थी.  लेकिन वर्तमान में विशेष रुप से हरिद्वार की कावड़ यात्रा भारत की सबसे बड़ी वार्षिक धार्मिक सभा बन गई है.  रिपोर्ट के मुताबिक 2010 और 18 के  कावड़ यात्रा में कुल 12 मिलियन से भी अधिक श्रद्धालु ने अपनी यात्रा पूरा किया था.  कावड़ यात्रा के लिए श्रद्धालु आसपास के राज्य  दिल्ली,  हरियाणा,  उत्तर प्रदेश,  बिहार,  पंजाब,  झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश ,  छत्तीसगढ़ इत्यादि राज्य से सबसे अधिक आते हैं.

  ऐसे में हर साल सावन के महीने में सरकार द्वारा काफी ज्यादा सुरक्षा उपाय भी किए जाते हैं और.  इस कावड़ यात्रा श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए सरकार ने दिल्ली हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात को इस अवधि के लिए डायवर्ट भी किया गया है.  कावड़ यात्रा परंपराओं के कारण वर्षिनी महाशिवरात्रि तीर्थ यात्रा होती है जहां मरीसन में लगभग 500000 हिंदू गंगा तालाब की तीर्थ यात्रा पर जाते हैं जिसमें कई लोग अपने घरों से कांवर लेकर नंगे पांव इस कावड़ यात्रा के लिए चल जाते हैं.

कावड़ यात्रा की व्युत्पत्ति विज्ञान ( Etymology of Kawad Yatra )

कावर यात्रा का नाम कावर यानी की कावड़ के नाम पर रखा गया है.  इसका मतलब एक छोटा सा डंडा होता है जो एक बार से बना होता है उस डंडे में दोनों भाग पर लगभग बराबर रूप से छोटे-छोटे डब्बे लटकाया जाता है और  इस बांस की डंडे को कंधों पर रखकर संतुलित किया जाता है.  हिंदी परंपराओं के अनुसार कावर शब्द  को संस्कृत में  काँवंरथी कहा जाता है. 

इस कावड़ को ले जाने वाले श्रद्धालुओं को कांवरिया कहा जाता है.  अपने कंधों पर कावर में ढका हुआ जल पात्र ले जाया जाता है. इस तरह कावड़ ले जाने वाली प्रथा को हिंदू धार्मिक तीर्थ यात्री के एक भाग के रूप में विशेष रूप से भगवान शिव के श्रद्धालु भक्तों द्वारा पूरे भारत में भव्य रूप से इसका पालन किया जाता है.

 कावड़ यात्रा की इतिहास (Kawad Yatra History )

हिंदू पुराणों के अनुसार कावर यात्रा का मतलब दूध के सागर मंथन से जोड़ा गया है.  जब दानव और भगवानों में सागर मंथन  के समय जब अमृत से पहले विश निकलता है और उसकी गर्मी से संसार जलने लगता है तब भगवान शिव ने उस शहर को पीना शुरू किया. 

और उस वक्त उस जहर को सुनने के बाद वह जहरकी नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित होने लगते हैं तो त्रेतायुग में शिव के परम भक्त रावण ने तपस्या किया था कि वह कावर में गंगा का पवित्र जल लेकर आएगा और उस से पुरा महादेव में शिव के मंदिर पर जलाभिषेक   किया जिससे  भगवान शिव को जहर की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिली. तभी से कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.

कावर यात्रा में बोल बम की महिमा (Kawar Yatra Me Bol Bom Ka Mahima)

 कावड़ यात्रा में बोल बम की महिमा भारत और नेपाल में शिव की महिमा करने वाले तीर्थ यात्रियों और त्योहारों को समर्पित करता है. इस त्यौहार में हर साल सावन महीना में मानसून के दौरान  से शुरू होती है. और नजदीकी नदिया गंगा नदी ( ऐसा नदी जो गंगा  मैं जाकर मिलती है ) मैं जाकर जल लेने के बाद  श्रद्धालुओं  जिसे कावड़िए या शिवभक्त भी कहा जाता है. 

वह अपने कावर पर गंगा नदी का जल लेकर भगवा वस्त्र पहनकर नंगे पांव यात्रा करना शुरू करते हैं और यह बहुत जरूरी है. इस यात्रा में हजारों लाखों में श्रद्धालु उपस्थित रहते हैं और कई किलोमीटर तक पैदल चलकर भगवान शिव की मंदिर पर गंगाजल प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं.कावड़ यात्रा का समापन होता है. इस तीर्थ यात्रा के दौरान श्रद्धालु लगातार हर बार और हर बात पर बोल बम बोल बम का नारा लगाते हुए,  भगवान शिव का महिमा गाते हुए आगे बढ़ते रहते हैं.

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कावड़ यात्रा की शुरुआत (Starting of Kawad Yatra )

हर साल सावन महीना में हिंदू धर्म में भगवान शिव को समर्पित किया जाता है.  इस महीने में अधिकांश श्रद्धालु रावण की हर सोमवार को व्रत रखते हैं क्योंकि यह चातुर्मास अवधि के दौरान भी आता है. रावण में मानसून के मौसम के दौरान हजारों भक्त भगवाधारी श्रद्धालु हरिद्वार गंगोत्री या गोमुख, सुल्तानगंज जैसे  पवित्र नदी जहां से गंगा बहती है वहां से  जल ले जाते हैं. उस जल को अपने मार्ग पर और अपने गृहनगर लौट जाते हैं जहां वह स्थानीय या प्रसिद्ध शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करके अपनी यात्रा को पूर्ण करते हैं.

इस यात्रा में ज्यादातर पुरुष लोग शामिल होते हैं लेकिन अधिकांश महिलाएं भी इस यात्रा में शामिल होने लगी है.  इस यात्रा में ज्यादातर लोग पैदल ही अपने दूरी को तय करते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो साइकिल,  मोटरसाइकिल,  स्कूटर,  मिनी ट्रक या जीत पर भी यात्रा करते हैं,  इस यात्रा के दौरान कई हिंदू संगठनों ने स्थानीय कावर संघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद संगठन यात्रा के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग श्रद्धालुओं की सेवा के लिए, भोजन,  आत्रे,  चिकित्सा सहायता और गंगाजल लेकर कावर लटकाने के लिए सेवा में उपस्थित रहते हैं. 

वाराणसी और इलाहाबाद जैसे स्थानों के लिए छोटी तीर्थ यात्राएं भी की जाती है जहां श्रावण मेला झारखंड के देवघर में एक प्रमुख त्योहार के रूप में मनाए जाते हैं. जहां हजारों की संख्या में भगवाधारी तीर्थयात्री 105 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करके सुल्तानगंज में गंगा के पवित्र जल लाते हैं और इसे भगवान बैजनाथ को जलाभिषेक करके अपनी यात्रा को पूरा करते हैं.  जब एक बार जब कोई श्रद्धालु तीर्थ यात्रा कर अपने गृह नगर पहुंचता है तब वह श्रावण महीने में 13 दिन या महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग को स्नान कराने के लिए गंगाजल का भी उपयोग  किया जाता है.

कावड़ यात्रा (Kawad Yatra )की कुछ शुरुआती मान्यताएं

a) कावड़ यात्रा की पहली मान्यता

हिंदू धर्म के अनुसार भगवान परशुराम ने सबसे पहले कावड़ यात्रा की शुरुआत की थी . कहां जाता है जब परशुराम गढ़मुक्तेश्वर  धाम से गंगाजल लेकर आए थे तब यूपी के बागपत के पास ही अवस्थित पुरा महादेव का गंगाजल से जलाभिषेक किया था.  और उस वक्त श्रावण महीना चल रही थी.  इसके कारण भी कहा जाता है कि कावड़ यात्रा की शुरुआत उसी समय से होते आ रहे हैं. 

b) कावड़ यात्रा  की दूसरी मान्यता

रामायण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि  भगवान राम ही पहले कावड़िया थे.आनंद रामायण के अनुसार भगवान राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बैजनाथ ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया था और उस श्रावण महीना चल रहा था उसी दिन से कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई है.

c) कावड़ यात्रा की  तीसरी  मान्यता

सबसे पहले त्रेता युग में श्रावण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की शुरुआत की थी.  उस वक्त श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाने के लिए अपनी कावर में बैठाया था और श्रवण कुमार के माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी और माता-पिता की इच्छा पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने अपनी कावड़ में ही माता-पिता को ले गए और उन्हें गंगा स्नान करवाया था साथ ही वापसी में गंगाजल भी साथ लेकर आए थे. 

d) कावड़ यात्रा की चौथी मान्यता

हिंदू ग्रंथों के अनुसार जब भगवान और दानव के बीच समुंदर मंथन हुए थे उस दौरान जब महादेव ने समुंद्र मंथन के दौरान निकली हुई  जहर को सेवन किया था तब  उक्त जहाज के प्रभावों को दूर करने के लिए  सभी देवी देवताओं मिलकर पवित्र नदियों का जल चढ़ाया गया था और भगवान शिव पर अर्पित कर दिया था उस वक्त सावन महीना चल रहा था तभी से मान्यता है कि कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.

कैलेंडर के अनुसार सावन में कावर यात्रा 

हर साल जुलाई से अगस्त महीने में कावड़ यात्रा होती है हालांकि बिहार राज्य के सुल्तानगंज से देवघर तक कावर यात्रा पूरे साल कावड़ियों द्वारा किया जाता है.  इस सावन में कावड़ यात्रा में श्रद्धालु 105 किलोमीटर की यात्रा नंगे पांव पूरा करते हैं.  इस दौरान भक्त और श्रद्धालु गंगा नदी के पवित्र जल को किसी कलश या घाटे में भरते हैं और इसे बांस से बने एक छोटे से खंभे पर अपने कंधों पर ले जाते हैं जिससे कावर कहते हैं और इसी से कावड़िया का नाम पड़ा है.

कावर यात्रा में शामिल होने के लिए सरकार के तरफ से जारी किए गए दिशानिर्देश

  • कावड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालु बिना वैध पहचान पत्र के किसी को भी कावड़ यात्रा में उपस्थित होने की अनुमति नहीं दी जाती है.
  • कावड़ यात्रा के दौरान कावड़ का  लंबाई 12 फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए.
  • कावड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को लाठी डंडे त्रिशूल वाला या कोई अन्य हथियार ले जाने की अनुमति नहीं दी जाती है.
  • कावड़ यात्रा के दौरान धार्मिक भावनाएं भड़काने वाले गाने बजाने पर सख्त कार्रवाई की जाती है.
  • श्रद्धालु कावड़ यात्रा के दौरान डीजे ले जा सकते हैं लेकिन आवाज नियंत्रित होनी चाहिए.

कावड़ यात्रा के दौरान उत्तराखंड सरकार द्वारा उठाए गए  सुरक्षा कदम

  • कावड़ यात्रा के दौरान 10000 से भी ज्यादा सुरक्षाकर्मी को तैनात किए जाते हैं.
  •  कावड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार और आसपास के इलाकों को पारस सुपर जून और 31 जून और 133 सेक्टर में बांटा गया है.
  • सरकार के तरफ से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए ड्रोन और सीसीटीवी कैमरे का इस्तेमाल भी किया जाता है.

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निष्कर्ष

 इस लेख में हमने जाना सावन महीने और सावन महीने में होने वाली भगवान शिव का पूजा और व्रत और अन्य त्योहार के बारे में विस्तार में.  आशा करता हूं आप लोगों को यह लेकर जरूर पसंद आई हो.  किसी तरह का सुझाव या साला है तू नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट जरूर करें धन्यवाद.

FAQs

Q. कावड़ यात्रा क्यों मनाया जाता है?

A. इस महीने में अधिकांश श्रद्धालु रावण की हर सोमवार को व्रत रखते हैं क्योंकि यह चातुर्मास अवधि के दौरान भी आता है. रावण में मानसून के मौसम के दौरान हजारों भक्त भगवाधारी श्रद्धालु हरिद्वार गंगोत्री या गोमुख, सुल्तानगंज जैसे  पवित्र नदी जहां से गंगा बहती है वहां से  जल ले जाते हैं. उस जल को अपने मार्ग पर और अपने गृहनगर लौट जाते हैं जहां वह स्थानीय या प्रसिद्ध शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करके अपनी यात्रा को पूर्ण करते हैं.

Q. कावड़ यात्रा का मतलब क्या है?

कावड़ यात्रा एक धार्मिक प्रदर्शनों की एक शैली को समर्पित करता है जहां श्रद्धालु एक डंडे  के दोनों साइड में छोटे-छोटे कंटेनर या कलर्स (  इसी उपकरण को कावड़ कहा जाता है) में पवित्र गंगा नदी से पानी लाते हैं. जिसे कवर का नाम दिया गया है.  पानी का स्रोत गंगा होने के कारण श्रद्धालु  दूर दूर तक जाकर गंगा नदी से अपने कावड़ पर उस जल को प्रसाद के रूप में भगवान शिव को समर्पित किया जाता है.

Q. सबसे पहले कावड़ कौन लाया था?

A. हिंदू धर्म के अनुसार भगवान परशुराम ने सबसे पहले कावड़ यात्रा की शुरुआत की थी . कहां जाता है जब परशुराम गढ़मुक्तेश्वर  धाम से गंगाजल लेकर आए थे तब यूपी के बागपत के पास ही अवस्थित पुरा महादेव का गंगाजल से जलाभिषेक किया था.  और उस वक्त श्रावण महीना चल रही थी.  इसके कारण भी कहा जाता है कि कावड़ यात्रा की शुरुआत उसी समय से होते आ रहे हैं. 

Q. कांवर की शुरुआत किसने की?

A. हिंदू धर्म के अनुसार भगवान परशुराम ने सबसे पहले कावड़ यात्रा की शुरुआत की थी

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